मैं ऐसी ही हूँ
मैं ऐसी ही हूँ
मैं ऐसी ही हूँ, हां
मैं हूँ थोड़ी नकचढी
थोडी-सी तुनकमिज़ाज हूँ
पलभर में खुश
तो पलभर में नाराज हूँ
कभी शोर से भरा संगीत
तो कभी अंदर तक टूटा साज हूँ
और क्या समझेंगे मुझे जब
मैं ही खुद को नहीं समझ पाई
कि मैं हूँ मस्त मगन सी चिड़िया
या पर्दे में छूपी लाज हूँ
हां बदल जाता है मिनटों में ही मूड मेरा
पर हमेशा अच्छाई के साथ हूँ
नहीं है आँखें मेरी झील सी गहरी
पर मैं खुद के मन की आवाज हूँ
अंत का तो पता नहीं मुझे अभी
पर खुली आँखों का आगाज हूँ
बोल देती हूं मैं भी भला बुरा
कभी-कभी मैं भी खोखला समाज हूँ
गौरवर्ण नहीं है न मैं दूध मलाई सी
धुंधला सा रात का प्रकाश हूँ
सुंदर भी नहीं हूँ सूरत से मैं
पर कुछ-कुछ गुणों का वास हूँ
अब क्या कहूँ मैं अपने बारे में
मैं तो खुद को अच्छा ही कहूंगी
पर मुझे वर्णित तो वो ही करेंगे
जो मेरे चारों ओर है
कि मैं संपूर्ण हूँ स्वयं में
या बाकी मुझमें कुछ और है।
