सपनों का भारत?
सपनों का भारत?
हर तरफ दंगे फसाद हैं।
घूसखोरी की माटी फैल रही है।
सफेदपोश होकर के सरकार
जनता के अरमानों से खेल रही है।
कर रही बेईमानी मनमानी
हर तरफ नेपोटिज्म का बोलबाला है।
बटोरकर जनता का सफेद धन
इनकी जेबों में पैसा काला है।
चुनती है जनता स्वयं प्रतिनिधि
पर कहां होते इनके सपने साकार हैं।
झूठे वादों से बनकर सरकार
पांच सालों तक करते अत्याचार हैं।
भर रहे तिजोरियां अपनी
भूखों मरती जनता है।
कर रहे देश में नंगा नाच
जनता की कौन परवाह करता है।
जब गणतंत्र है देश हमारा
क्यों परतंत्र बना रहे हैं।
सैकड़ो घोटाले कर के
अपने ही देश को जला रहे हो।
होता रहा जो इसी तरह सब
देश न स्वतंत्र रह पायेगा।
फूट डालो राज करो नीति से
कोई ओर फायदा ले जायेगा।