STORYMIRROR

Vidhya Koli

Tragedy

4  

Vidhya Koli

Tragedy

इंसाफ

इंसाफ

1 min
221

चारों ओर से घूरती ये आँखें 

लड़कियों पर पहरा हैं

खंजर से भी न हो जो इनसे

वो घाव गहरा हैं

इन आँखों को देखकर 

सोचती हैं वो

क्यूं घूरते हैं ये

मेरे कपड़े तो ठीक हैं

मेरी चाल तो सटीक हैं

होता है कभी-कभी 

लड़कियों को खुद पर शक

क्या हमें नहीं है 

आजादी से जीने का हक

जो लड़कियों पर 

फेंकते तेजाब हैं

उन्हें कोई सजा नहीं 

वो घूमते बेबाक हैं

इनके घरों में लड़कियाँ होती होगी?

क्या वो भी कभी चैन से सोती होगी?

मासूम सी अजन्मी पर भी 

होता अत्याचार हैं

न जाने कब मिटेगा 

ये तो व्याभिचार हैं?

जब भी होगा ये अन्याय 

बस होगा एक ही उपाय 

सब बन जायेगी निर्भया

न होगी अब उन पर दया 

जब ईश्वर उनके 

कुकर्मों की देगा 

उनको सजा

अगर...

होगा यूं निष्पक्ष इंसाफ

तो मिट जायेगा करूण विलाप 

न्याय की परिधि को 

करना होगा विस्तृत 

लेना होगा नव विकल्प 

इस कुकृत्य को मिटाना होगा 

नव भारत बनाना होगा...!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy