आईना मेरी कहानी कह गया
आईना मेरी कहानी कह गया
आज आईना ही मुझसे मेरी,
कहानी कह गया।
सोलह बरस सी मेरी,
जवानी कह गया।
बस फिर क्या था?
बन गई मैं सोलह साल की,
अलमारी में रखी वो,
मिनी स्कर्ट पहन ली।
हो गयी तीस वाली कमर,
सोलह साल सी।
गालों पे भी सजा ली,
लाली लाल सी।
केश खुले उड़ने लगे,
पंखे की हवा से।
फिर भावनाएं जाग उठी,
सोलह साल सी।
देख मुझे आईना भी,
मुस्कुरा उठा!!
बोला क्या उम्र भूल गयीं,
तीस साल की।
वैसे सच कहूँ तो,
किसी अप्सरा सी दिखती हो।
छोड़ो झमेले,
बनी रहो सोलह साल की।
मैंने कहा,
हट!!!!! पगले तू कितना हंसाएगा?
कितने दीवाने मेरे पीछे लगाएगा?
देखेगा ज़माना तो जाने क्या कहेगा?
बुढ़िया देखो बनने चली है जवान सी।
मालूम ये ना था,
पति देव चुपके से सब देख रहे थे।
आईने की झुकी आंखें,
मैं भी हुई,
सुर्ख लाल सी।
लगा के गले कहने लगे,
सुनो भाग्यवान!!!!
चाहे तो बनी रहो,
सोलह साल सी।
पर बनकर बाहर,
तीस की ही जाना।
सोलह की बाहर जाकर,
मेरी छुट्टी ना करवाना।
फिर हाथ झटका मैंने!!!
कहा! जी हटो!!!
क्यूँ ना तुम भी संग मेरे सोलह से बनो।