जीवन एक मौसम चक्र
जीवन एक मौसम चक्र
बीज सा ये अपना जीवन,
सींचती मां प्यार देती।
खिलता जीवन, खिलती कलियां,
खिलते पत्ते, खिलती दुनियां।
हर नए इक मौसमों पे,
रंग यूं लिपटे हुए हैं।
कभी हरे हैं,
कभी हैं भूरे।
पत्ते यूं बिखरे हुए हैं।
वेदना के पत्ते सारे,
पतझड़ों में झड़ चुके हैं।
धरती, पर्वत और नदियां,
अश्रुओं से भर चुके हैं।
टहनियां खाली हुई पर,
हम जड़ों पर स्थिर रहें हैं।
कभी वसंतों में बहारें,
पतझड़ों में टीस सी है।
ग्रीष्म में झुलसे हैं पत्ते,
बारिशों में शीत सी है।
लौट आयी फिर बहारें,
हरी-भरी दुनियां लगे है।
मौसमों के चक्र सारे,
चलते हैं चलते रहे हैं।