उम्मीद में बदलता चल
उम्मीद में बदलता चल
पाँवों में बाँध के उम्मीद की झंकार,
जीवन के पथरीले रास्तों पर बढ़ता चल।
कभी तू प्यास से व्याकुल रहेगा,
और मिलेंगी सूखी नदियां।
तू अपने धैर्य वाली बारिशों से,
उनको भरता चल।
जिसने दिन बनाया है,
उसी ने रात भी।
जिसने हवा बनाई है,
उसी ने आग भी।
हवा लाख बुझा ले,
तेरे हौसलों की आग।
तू अपने हौसलों से ही,
उसे सुलगाता चल।
जैसे अंधेरी रात में भी चंद्रमा,
रोशन सा रहता है।
वैसे तू भी हर ना उम्मीदी को,
उम्मीद में बदलता चल।
निराशा हताशा को,
पांवों से ठोकर मार।
कामयाबी खुशी से रोशन,
जीवन को भरता चल।
