रूठने का तुम दिखावा करोगे
रूठने का तुम दिखावा करोगे
लगता है मेरी आंखें,
पढ़ना भूल बैठे हो।
सोचती हूं पत्र एक,
प्यार भरा लिख दूँ।
शायद मैं भी जुबां से,
कहने में अब असफल रहूँ।
इसलिए चलो ये कागज़ कोरा,
प्रेम स्याह से भर दूं।
लिखे जज्बातों को तो समझ लोगे ना,
मेरे हालातों को तो समझ लोगे ना।
या फिर से इतराओगे पत्र ये पढ़कर मेरा,
और नादान नासमझ बनने का दिखावा करोगे।
भूलना मत मुझसे ना जीत पाओगे।
अगर रूठकर ना मानने का तुम दावा करोगे।
तुम जानते हो ना !
जीत तुम्हारी ही होगी,
इसलिए जानती हूं,
रूठने का तुम दिखावा करोगे !

