पानी तेरे कितने हैं रूप
पानी तेरे कितने हैं रूप
ऐ पानी तेरे कितने हैं रूप,
कभी जीवों की प्यास बुझा रहा।
गंगा मैया में बन पवित्र जल,
तू बहा सा जा रहा।
कहीं प्यास से सूखते गले,
तेरी एक बूंद को तरस रहे।
कहीं बन ऊफानी लहरें तू,
विकराल रूप दिखा रहा।
बता ना ओ बहते जल,
तू किस शहर को जा रहा।
कौन सा घर ढ़हा रहा।
कहीं तेरी रिमझिम बदरा,
मन को सुकून है दे रही।
कहीं कोई देख अंतिम यात्रा,
भी भीग कर निकल रही।
किसी की आंख से बहते अश्रुजल,
बरसात में मिला रहा।
थम जा ज़रा,
रूक जा ज़रा।
क्यूं कहर है बरपा रहा।
देख तो धरा पूरी,
महामारी से ग्रस्त है।
उस पर तेरा भयावह रूप,
चिंता से मानुष त्रस्त हैं।
माना बिन तेरे प्राण नहीं,
पर तेरी अति प्राण संग ले जा रही है।
माना चिता भी पवित्र गंगाजल से मुक्ति पा रही है।
पर शांत बहते रहना तेरा,
त्रासदी नहीं लाता।
आज यूं तूफां संग ना आता,
तो नाम तेरा प्राकृतिक आपदा ना कहलाता।