बलात्कार एक कुकृत्य
बलात्कार एक कुकृत्य
मन कुंठित हो जाता है,
जब छपती है तस्वीर कोई।
सिसकियों में भी चीखती है,
दर्द की खिंची लकीर कोई।
दरिंदगी की हदें पार करने वाले,
ओ दरिंदों!
क्या होगा जब तुम्हारी,
बहनों माओं को हैवान मिले।
खून तो नहीं खोलेगा ना!!!
चूड़ियों से हाथ सजा लोगे।
मौत पर अपनी बहनों की,
होठों पर मुस्कान सजा लोगे।
खाली घर, खाली कमरों में,
सिसकियां भर भर रोती हैं।
कोई अस्पतालों में जूझती मौत से,
और उनकी मां दहाड़ कर रोती है।
जो जिंदा सी बच जाती हैं,
बिना जान की लाश कोई।
नींदों में भी चिल्लाती है,
दर्द भरी आवाज़ कोई।
खुद के ही तन को,
देख-देख वो नोचा करती हैं।
उनकी मांओं से पूछो,
कैसे वो रातों में जाग कर सोती हैं???
कोई निर्भया, कोई राखी,
कोई आसिफा मरती है।
थोडे दिन मार्च हैं चलते,
और मोमबतियां जलती हैं।
आत्माएं भी चीख चीख जब,
दर्द में आहें भरतीं हैं।
तब लाखों में कोई निड़र,
एक निर्भया की मां निकलती है ।
एडियां भी छिल छिल जाती मां की,
तब सात सालों में इन्साफ मिलता है।
हजारों मांए तो यूं ही,
समाज के ड़र में पलती हैं।
बनो कालका खुद ही,
और अपनी सुरक्षा साथ रखो।
जहाँ दिखे हैवान कोई,
गर्दन पर तलवार रखो।
