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Sheetal Raghav

Comedy Tragedy Inspirational

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Sheetal Raghav

Comedy Tragedy Inspirational

हंसी ठिठोली !

हंसी ठिठोली !

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प्लास्टिक की थैली,

आदमी की जेब से बोली,

तेरी क्या औकात मेरे आगे,


सारे बाजार का बोझ मैं उठाती,

चाहे वह सब्जी फल या हो मिठाई,

चाहे हो आई दूध दही लेने की बारी, 

सब जगह बस मैं ही मैं हूं,

दूसरा कोई नहीं


आदमी की जेब है कहती,

मै ना होती, बहिनिया तो तुम कहां से आती,

मेरी हमशक्ल होकर तुम,

मुझे हो चिढ़ाती।


पहले मैं आई, तब उद्भव तुम्हारा हुआ,

जो मैं ना बनती तो तुम अस्तित्व कहां से पाती, 

मैं हूं। पैसों से भरी, 

नहीं! जो मैं होती तो,

तुम रह जाती राह में ठगी सी खड़ी।


तुम्हारा तो मोल है पर मैं तो अनमोल हूं,

थैली बोली ठीक है,

घमंड ना करो,

जो मैं ना होती तो, तुम सामान कहां से लाते,,

सब्जी तो हाथ में आ जा ती,

पर दूध तुम क्या खुद में भर कर लाती,

सौ ग्राम भी दूध भी ना समा पाती हो तुम,

फिर भी इतना घमंड हो दिखलाती, तुम,


सुनकर आदमी गुस्से से गुर्राया, 

चुप कर थैली और जेब तुम अपनी लड़ाई,

आज आम आदमी की जेब है, खाली,

जेब में नहीं दो फूटी कौडी तो,

थैली तेरी क्या औकात,

जेब का जब साथ हो,

तभी तो तुम्हारा विकास है।


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