मेरी नानी
मेरी नानी
बूढ़ी है मगर बड़ी प्यारी लगती
उसको मैं ही बहुत दुलारी लगती
मोटी है गोल टमाटर की सी लाल
नानी है मेरी वो खजाने की थाल।
सुनती कम है पर सुन लिया कहती
समझ गई है बस नाटक वो करती
चिल्लाकर जोर से बोलूं कान में तो
अनसुनी बात में ही वो ठहाका भरती।
बाहर आंगन में दूर मेरी राहें तकती है
जब तक कि उसकी आँखें ना थकती है
दिख जाऊं जो उसे कभी आती कभी मैं
फिर बैठ सामने देखने को बेचैन वो रहती।
कपड़ों में मेरे लिए अपना प्यार है बुनती
ना पहनूँ तो मेरी चोटी को वो है चुनती
प्यार में इतना बहती जाती है कि फिर
वो उस अमीरी में मेरी एक भी न सुनती।