ख़ामोशी की जुंबा
ख़ामोशी की जुंबा
सबका अपना अपना तरीका होता है,
अपनी बात कहने का,
कोई धीरे-धीरे कहता है,
कोई चिल्ला चिल्ला कहता है,
कोई मधुर बोलकर कह जाता है,
कोई कड़वाहट के साथ बोलकर देता है,
कोई प्यार से समझाकर कहता है,
कोई गुस्सा करके बोल जाता है,
कोई कुछ ना बोलकर भी बहुत कुछ कह जाता है,
ये ख़ामोशी की भाषा कहाँ कोई समझ पाता है।
