नदी पर दोहे
नदी पर दोहे
सिंधू से मिलने चली, लता-चंद्र श्रृंगार।
सिर तारों के ओढ़नी, दुल्हन सी तैयार।।
माँ मान नदी पूजते, करते हम आभार।
अविरल बहती ही रहे, मृदु-पाक जलधार।।
अपनी ही धुन में रहे, चले शेरनी चाल।
कभी शांत हो भाव से, कभी रूप विकराल।।
