बुंदेलखंडी हास्य कविता
बुंदेलखंडी हास्य कविता
आ गई धन्नो नाक फुला कैं....
इनकी मताई ने जाओ तो इनको हरी मिर्च कों खा कैं
आ गई धन्नो नाक फुला कैं.....
उन्ना कपड़ा फाड़ फूड़ के कर दये लत्ता-लत्ता,
बासन भाड़े फोड़ फाड़ कैं कर दये पत्ता-पत्ता,
बारे-बारे से मोड़ा मोड़ी पटक लगीं उठा-उठा कैं
आ गईं धन्नो नाक फुला कैं.....
जब इनको ब्याओ भओ हमाऊं पछताने बन कैं दूल्हा,
लूगरन से परी भांवरें फूला मिले न फुलका,
धुआं धार सी मिलगईं धन्नो धनुषजग्ग रचा कैं
आ गईं धन्नो नाक फुला कैं.....
जब देखो जब इनई की चलती
हमाई तो जे नेकाऊं न सुनती
नैक कछु इक बात करो तो उते सै परती गुर्रा कैं बाघिन सी
आ गईं धन्नो नाक फुला कैं.....