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गुलाब और काँटे

गुलाब और काँटे

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गुलाब के फूल में है सुंदरता ऐसी

लोग काँटे को निकाल कर फेंक देते हैं।

फूल और काँटों को जुदा करके

खुद को वो महफूज समझते हैं।


पूछा फूल से एक दिन मैंने

तो जवाब मिला मुझे कुछ ऐसा

रिश्ता हो सच्चा दुनिया में गर,

तो हो गुलाब और काँटे के जैसा।


गुलाब को डर है कि खो न दूँ,

वह काँटे को छुपाकर रखती है।

सुंदरता जो दिख जाए गुलाब की,

काँटों में भी मुस्कुराहट रहती है।


एक महिला ने उस दिन देखा मुझको,

मोहित हो गई और तोड़ लिया।

काँटे ने बचाना चाहा जब मुझे,

तो काँटों को भी मरोड़ दिया।


बहुत ही सुंदर बाल थे उसके,

गजरे के जैसे मुझे बना दिया।

महक रही थी मैं मनमोहनी जैसी,

इसलिए बालों में अपने लगा लिया।


रात बीती जब मन भर गया,

अब उसे मेरी जरूरत नहीं थी,

बालों में से निकाल कर बाहर,

मेज पर बिखरी मैं भी पड़ीं थी।


साफ किया जब मेज को उसने,

कचरें के ढेर में मुझे फेंक दिया,

अधमरे पड़े थे वो काँटे मेरे,

मैंने उन्हें वहाँ बेसुध देख लिया।


जान नहीं बची थी उन काँटों में,

इसलिए मुझमें उदासी छा गई।

अब किस काम की सुंदरता मेरी,

यही सोच कर मैं भी मुरझा गई।


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