घृणित काम
घृणित काम
एक लड़की रात के समय बेसुध सी इधर उधर भागे।
कभी रोए, कभी चीखे, चार गुंडे पीछे वह आगे आगे।
ज़ोर ज़ोर से चिल्लाए भी, किसी को मदद को बुलाए।
रात के अंधेरे में सुनसान रास्ते पर कोई नज़र न आए।
कोई हो, जो बेचारी असहाय लड़की की लाज बचाए।
मगर वही हुआ,जो न होना था,गुंडे लड़की पर क़ाबू पाए।
वह मासूम असहाय मजबूर लड़की तो रोए गिड़गिड़ाए।
खूब हाथ जोड़े, पैर पकड़े, विनती करे, मचले छटपटाए।
गुंडों पर लड़की के रोने चीखने का हुआ न असर कोई।
उनको उस पर तरस न आया, चाहे वह कितनी भी रोई।
उन गुंडों ने किया घृणित काम, दिखाया वीभत्स रूप।
ऐसे पुरुषों ने किया पुरुषों को बदनाम व किया कुरूप।
जिसने भी देखा वह वीभत्स दृश्य, उसके ही अश्रु बहे।
सभ्य समाज में ऐसी विभत्स दुर्घटनाएं कब तक सहे।