क्या सखि साजन?
क्या सखि साजन?
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पँछी जैसे इत उत डोले।
घूमत रहे बिन कछु बोले।
जैसे हो कोई आवारा मलंग।
क्या सखि साजन? ना सखि पतंग!
मैं पहनूं इसको सुबह शाम।
इसके बिन होता नहीं काम।
इसकी आवाज़ से हो जाऊं पागल।
क्या सखि साजन? ना सखि पायल!