मन सुंदर तो
मन सुंदर तो
कुछ ऐसे कर्म भी होते यारों,
जिनसे मन की तृप्ति होती
जिनसे खुशियाँ मिलती अन्तर्मन को
अनुभूति होती अजीब नई।
दो रोटी जो गाय को दे दो,
पीड़ा घर-परिवार की दूर सभी
सुबह-शाम घर देव विराजे
हो नर-नारी में पुजा-अर्चना संग मन भक्ति भी।
व्यापार संग रोजगार बढ़ेगा, होगी पक्षियों की तृप्ति भी
धन-संपदा भी घर को आए
उन्हे नियति हो दाना-पानी देने की।
दूध-रोटी दो कुकुर को बंधु, दुश्मनों की हो छुट्टी भी&nbs
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यम-शनि देव खुश हो जाते
धर्म-कर्म में होगी वृद्धि भी।
पितृ दोष से मुक्ति मिलती, काली चीटी होती चोटी सी
पूर्वज अपने आशीष-आशीर्वाद देते
दिन-दोगुनी रात-चौगुनी होती उन्नति भी।
खोई समृद्धि वापस मिलती,
सुनहरी मछ्ली पाली कभी
आटे की छोटी-छोटी गोलियों को दे दो
दौड़ी आती घर लक्ष्मी भी।
मात-पिता की सेवा जहां हो,
वहाँ विराजे देवता सभी
धर्म-कर्म में होती वृद्धि
तब खुश हो जाते देवता सभी