एक सपना
एक सपना
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हर तरफ जगमगाती रोशनी
धुँए का एक गुबार सा उठा।
कानों को चीरती आवाज अटपटी
और लगा जैसे कुछ धम्म से गिरा।।
कुछ समझ में आता कि अचानक
देखा मेरी श्यामा रानी कहीं नहीं थी।
मेरी गैया श्यामा मेरी सबसे अच्छी दोस्त
डर के मारे मेरी चीख निकलने ही वाली थी।।
धुँए का गुबार हुआ कुछ हलका
तभी मेरा माथा जैसे कुछ ठनका।
सामने था कुछ अजीबोगरीब सा यान
हो रहा था मुझे किसी अनहोनी का भान।।
देखा मेरी श्यामा को वो लिये जा रहे थे
मैं परेशान और वो जाने क्या गुनगुना रहे थे।
पहले तो ठिठका फिर मैं दौड़कर यान की ओर लपका
उछला सीधे यान के भीतर जैसे ही मेरे पैरों को लगा धक्का।।
एक सुनहरी सी रोशनी में मैं और मेरी श्यामा खड़े थे
दिखे कुछ हरे नीले चमकते चेहरे जिनमें शीशे जड़े थे।
इशारों में कर रहे थे वे कुछ बातें और
एक दूसरे को जाने क्या समझाते।।
मैंने भी मौके का फायदा उठाया
श्यामा की पूँछ पकड़ उसे ऐंड़ लगाया।
भागकर कूदे नीचे अपनी दोनों आँखों को भींचे
आगे थी मेरी श्यामा और मैं उसके पीछे।।
तभी अचानक पापा ने आवाज लगाया
आँख खोली तो खुद को जमीन पर पाया।
धीरे-धीरे सारा माजरा मेरी समझ में आया
नींद में था मैं जरूर किसी सपने में खोया।।