STORYMIRROR

EK SHAYAR KA KHAWAAB

Drama Tragedy

3  

EK SHAYAR KA KHAWAAB

Drama Tragedy

एक ख़ामोशी।

एक ख़ामोशी।

1 min
252

बस एक ख़ामोशी फिर घिर आयी है।

चलते-चलते कहीं दूर तलक रास्ता फिर भटक आयी है।


थी किसी के इंतज़ार में वहाँ मौन खड़ी।

फिर राही मिल गया और वो उसके संग हो गयी।


कहने को तो इंतज़ार लंबा था।

पर ख़ामोशी की सन्नाटे संग कितने रोज कटती।


आखिरकार ख़ामोशी को भी तो टूटना था।

बस फिर क्या था पल भर में ख़ामोशी के सन्नाटे संग साथ छूट गया।


अकेले होने के दर्द से सन्नाटा चारों तरफ पसर गया।

न फ़िज़ा चली न पत्ता हिला बस सन्न-सन्न सन्नाटा रोता रहा।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama