जीने लगा हूँ
जीने लगा हूँ
आजकल जीने लगा हूँ।
न किसी के डर से न किसी संशय से,
होकर खुद मे मग्न मै उड़ने लगा हूँ।
जी लिया बहुत मर-मर कर
अब न पहले वाला हौंसला रहा
न वक़्त से उम्मीद रही मेरे रिस्ते जख्मो के भरने की,
अब तो खुद ही जख्मो को नासूर बना लेता हूँ।
पग-पग करके मै सीढ़िया चढ़ता हूँ।
गिरता हूँ पर उठने की जेहमत नही करता।
क्योकि अब न दौड़ रही किसी से जब से मै खुद से हार गया हूँ।
रिश्तो की दौड़ भी खूब लगा ली।
अब तो खुद को ही खुद से दूर रखता हूँ।
कही टकराव न हो जाये मुझसे खुद का आईने को भी मै ढक कर रखता हूँ।
उसके साथ ऐसा है साथ मेरा ज्यो सात जन्मो का पक्का रिश्ता मेरा।
भूले से भी न मै भूलू उसे जब से उसके आँसुओ सँग बह मै नदी हो गया हूँ।
न मै जीना चाहता हूँ न वो मुझे मरने देती है।
बस रोज मेरी मौत से आँख मिन्चोली वो करती रहती है
और मै भगत हाथ पकड़ा कर मौत को रोज जिंदगी सा जीने लगा हूँ।
