STORYMIRROR

EK SHAYAR KA KHAWAAB

Tragedy Inspirational

3  

EK SHAYAR KA KHAWAAB

Tragedy Inspirational

बोझ दुनिया का।

बोझ दुनिया का।

1 min
274

बोझ दुनिया का उठा के मैं चलता रहा।

ना दुःखी हुआ ना चेहरे पर शिकन लाई

फिर भी हँसता हुआ चेहरा मेरा दुनिया को

दिखता रहा।


नग्न बदन से चलते हुए दूर तलक

चिलचिलाती धूप में मैं जलता रहा।

ना भूख देखी न प्यास फिर भी

मैं पेट को गांठे मार आगे बढ़ता रहा।


बचपन की अठखेलियां करने को

मेरा भी दिल करता था।

पर घर की मज़बूरियों के सामने

बचपन को मैं ठेंगा दिखा घरवालों का

पेट भरता रहा।


पैरो में पड़ गये छाले है।

कोमल हाथ मेरे हो गये जख़्मी है।

फिर भी रँग बिरँगी पन्नियों से

रोटी कमाने की ज़िद मैं मन में ठाने रहा।


क्या हुआ जो अभी फटेहाल है मेरे

अभी तो बचपन की कुछ यादों को

धुंधला किया है मैंने।

मुसीबतें इतनी भी नहीं जितनी दिखती है।

भगत फिर भी बचपन की यादों को

जवानी के कांधे पर लेकर मैला ढोता रहा।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy