मेरे अंदर पता नहीं क्या
मेरे अंदर पता नहीं क्या
मेरे अंदर पता नही क्या चल रहा है।
कहीं भावनाओं का उफान है तो कही अश्रुओं की बारिश में
भीगा बदन अपने आपको भिगोना चाहता है।
कोई उमंग नही है कोई तरंग नही जीने की राह मे बस दूर तलक कांटे बिछे दिखते हैं।
बस उठता हूँ हर सुबह सांसो की इस दुनिया में
कुछ रिश्तो की खातिर दिया इस देह का बुझने नही देता।
है कुछ उनसे पिछले जन्म का रिश्ता की अपनी साँसे उनके नाम किये जाता हूँ।
कभी-कभी सोचता हूँ क्यूँ जी रहा हूँ।
क्यों बोझ सांसो का हर रोज बदस्तूर ठो रहा हूँ।
कभी तो ये कारवाँ अपनी मंजिल को पायेगा या
यूँ ही रास्तो पे किसी रहबर की तलाश मे ये रास्ते तलाशते रहेगा।
गर मंजिल ही नहीं है तो ऐ खुदा
ये पहाड़ सी जिंदगी किस जन्म का बदला निकालने को दी है।
मै तो जिंदगी को जिंदगी की तरह अपनाना चाहता था।
न जाने क्यों तूने मुझ मिटटी के खिलौने मे जीवन रूपी साँसे डाल कर
तेरे हाथो की कठपुतली बना खेलने के लिये इस वीराने मे छोड़ दिया।
