काश! मै भी एक ख़त हो पाता
काश! मै भी एक ख़त हो पाता
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
चुपके से उसके हाथों मे जाकर
उसकी उँगलियों को चूमता
और उसे पता भी न चल पाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
जिसके पास जहाँ जाना चाहता
उसके पास वही पहुँच जाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
महबूब की याद मे प्रेयसी की आँखो से
टपकते आँसुओ की सिली-सिली खुशबू का
एहसास कर पाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
बरसो पहले एक माँ से दूर हुऐ उसके बच्चे के
लौट आने की ख़ुशी का एक ज़रिया बन पाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
सरहद पर कही दूर कड़कती ठंड मे खड़े सैनिक तक
पहुँचकर उसके घरवालों के प्यार की गरमाई का आभास उसे करा पाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।
बेनाम कही दूर निकलकर बिना किसी भेदभाव,
राजनीती,द्वेष,ईर्ष्या,कटुता,कटरता से दूर निकलकर
मै अकेला मौन हो शून्य मे मिल पाता।
काश! मै भी एक ख़त हो पाता।