मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
ना जाने कब, कहाँ , कैसे
इंसानों के भेस में या बेजान पत्थरों की लंबी कतारों में
खड़ा हो मैं तुम्हारा इंतज़ार जरूर करूँगा।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
नभ चाहे धरती से मिल जाये या सूरज की किरणों की
तपिश कम हो जाये।
मैं चीरकर नील गगन का सीना तेरे लिये
बादलों पे बैठकर तुझसे मिलने जरूर आऊँगा।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
अभी तो समय चक्र ने मेरा आगे बढ़ना रोक सा दिया है।
जैसे तमन्ना की कलिया खिली तो बहुत पर हकीकत के
फूल उस पर कम खिले।
कलियाँ खिली है तो इन पर फूल भी आयेंगे।
तुम इनके खिलने तक मेरा इंतज़ार करना।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
घड़ी की सुइयों ने इंतज़ार की बेला को और भी लंबा किया है।
जो कभी न खत्म हो ऐसी बिरह की तड़प को दिल में घर किया है।
भगत गंगा जैसी पवित्र अश्रु धारा में भीगा कर
खुद की रूह को उससे मिलने की आस में
चौबीस हजारी योनि में सफर जारी रखा है।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।