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EK SHAYAR KA KHAWAAB

Others

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EK SHAYAR KA KHAWAAB

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रचनाकार

रचनाकार

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खामोश सी ये रात

उस पर तेरे हुस्न का कहर

और मेरी जान उस पर

मेरी मोहब्बत का इम्तिहान।

उफ़्फ़ कमाल है, कमाल है।

क़ुदरत ने जो तुझसे मोहब्बत 

करवाई उसकी बधाई हो 

उसको जिसने ये रचना बनायी।


रचनाकार ने रचा के ये

खिलौने जो इनमें जान 

डाली ये उसकी 

रचनात्मकता का प्रतीक है।

ये इंसान ही है जो

नाचता है और 

नचानेवाला तो सिर्फ 

नचाता है।


कभी घमंड में हो अँधा

खुद को रब बतलाता है।

पल में घिर कर मुसीबतों में

खुद को अदना नर बतलाता है।

अपना अस्तित्व पल का नहीं

और घड़ी को पल-पल गुलाम बताता है।


जिसने बनाया तुझको 

उसको तेरी मियाद का पता है।

कितनी साँसे बाकी है कितनी ली है

उन सब का हिसाब-किताब उसने

कर रखा है।

तू बस उसकी हुजूरी में सिर को

झुकाये जा और उस अनंत

की अनुभूति का एहसास खुद को कराये जा।



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