शायद क़ैद दीवारों से निकल कर खुली फ़िज़ाओं में एक आख़िरी , दम भरना चाहती है। शायद क़ैद दीवारों से निकल कर खुली फ़िज़ाओं में एक आख़िरी , दम भरना चाहती है।
सितार के तारों -सा मन में , गूँज रहा मल्हार का गान भँवरे, तितलियाँ, गा रहे हैं मानो , कोई सुरीली ता... सितार के तारों -सा मन में , गूँज रहा मल्हार का गान भँवरे, तितलियाँ, गा रहे हैं ...
कहने को तो इंतज़ार लंबा था। पर ख़ामोशी की सन्नाटे संग कितने रोज कटती। कहने को तो इंतज़ार लंबा था। पर ख़ामोशी की सन्नाटे संग कितने रोज कटती।