बारिश का एहसास
बारिश का एहसास
आज फिज़ाओं से आ रही, कैसी है ये आवाज़ ?
मानो घुलने वाला हो, इन हवाओं में कोई साज़
ओढ़ रहा है आसमाँ, घनघोर अँधेरे का रंग
ढल रही है उदासी , छा रही है नई उमंग
आज ख़ुदा तक जाएँगी सारी अनकही सिफारिशें
कुबूल होंगी दुआएँ क्योंकि पैग़ाम बनेंगी बारिशें
जी चाहे ये रूहानी ठंडक , ज़हन में ही रह जाए
सारे ज़ख्म, सारे दर्द , बस इस बारिश में बह जाएँ।।
ये बूँदें चुपके- से छिपे, आफ़ताब से कुछ नूर माँगे
बरसा रहे हैं बादल देखो! पिघलते चांदी के धागे
अब इन धागों में उलझकर, जिंदगी के धागे सुलझ जाएँ
सारे ज़ख्म, सारे दर्द , बस इस बारिश में बह जाएँ।।
सितार के तारों -सा मन में , गूँज रहा मल्हार का गान
भँवरे, तितलियाँ, गा रहे हैं मानो , कोई सुरीली तान
ज़िंदगी के खुशनुमा लम्हों की महफ़िल, आज फिर से सज जाए
सारे ज़ख्म, सारे दर्द , बस इस बारिश में बह जाएँ।।
धुल उठेंगे आज सभी ज़ख्म-ए-तमन्ना के घाव
दर्दे -आँसुओं की इस धूप में ,बिछेगी राहत की छाँव
टूटी ख्वाहिशों का धुआँ आज, बारिश के पानी में घुल जाए
सारे ज़ख्म सारे दर्द बस इस बारिश में बह जाएँ।।
ये बूँदें न जाने सरहदें, ना पहचानती हैं पैमाने
बस बरसाती जाती हैं अपने , प्रेम के अफ़साने
इन अफ़सानों में जिंदगानी के लम्हें, यूँ ही कटते जाएँ
सारे ज़ख्म, सारे दर्द, बस इस बारिश में बह जाएँ।।