शायद क़ैद दीवारों से निकल कर खुली फ़िज़ाओं में एक आख़िरी , दम भरना चाहती है। शायद क़ैद दीवारों से निकल कर खुली फ़िज़ाओं में एक आख़िरी , दम भरना चाहती है।
घर छोडते वक्त, सब चीजें तो हम समेटते है... लेकिन जिस घर हम रहते थे, उसका क्या, उसकी भावनाओं का क्या.... घर छोडते वक्त, सब चीजें तो हम समेटते है... लेकिन जिस घर हम रहते थे, उसका क्या, उ...
बहुत मुश्किल था हर रिश्ता निभाना कितना भी सींचा न आया खिलाना हर बार सब करके कुछ कसर रह जाना न दे... बहुत मुश्किल था हर रिश्ता निभाना कितना भी सींचा न आया खिलाना हर बार सब करके क...
हो जाती हर चीज पुरानी धुंधली हो जाती वक्त के साथ यादें नहीं भूलती है जो चीज वो है बातें मायके की ... हो जाती हर चीज पुरानी धुंधली हो जाती वक्त के साथ यादें नहीं भूलती है जो चीज व...
बच्चन की फिल्मों का मैंने 'आलाप' देखा है। 'मजबूर' जिंदगी का किस्सा हर शाम देखा है।। 'दीवार' ... बच्चन की फिल्मों का मैंने 'आलाप' देखा है। 'मजबूर' जिंदगी का किस्सा हर शाम द...