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Hafsah Faquih

Inspirational

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Hafsah Faquih

Inspirational

वह खिड़की

वह खिड़की

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कुछ दर्द

कुछ तकलीफ़ें

कुछ ख़ौफ़

कुछ परेशनियाँ

कुछ पाक-नापाक इरादे

अपनी ख़ामोशियों 

के साये में

बयान कर जाती है। 

धूल से ढके

रोशनियों से सजे

अपने तन पर

मेरे लिए 

कुछ पैग़ाम 

लिखती चली जाती है। 

अपनी ढलती हुई 

जवानी को 

तेज़ उजालों के 

साये में छुपाती हुई 

यह शायद फिर 

जवानी के घूँट 

पीने का इरादा रखती है। 

शायद क़ैद दीवारों 

से निकल कर 

खुली फ़िज़ाओं में 

एक आख़िरी 

दम भरना चाहती है। 

तभी तो 

सदियों से 

मेरी ओर 

एक उम्मीद लिए

एक आस भरे

बड़ी हसरत से 

तकती रहती है। 

मेरे नए कमरे की 

यह पुरानी खिड़की 

मुझसे हर रोज़ 

कुछ कहती है! 


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