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Dhanashree Dhanashree

Others

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जब लोग पूछेंगे किस घर से यह आई

जब लोग पूछेंगे किस घर से यह आई

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वक़्त के काटे की आवाज आज कुछ जोरोंसे कनो पे पड रही है।

क्या वो कुछ कह रही है।

बेफिक्र गुम हूं मैं, घर खाली कर रही हूं मैं।


पर दिल पे एक बोझ सा है।

समेट रहीं हूं क्यों चीजे ?

क्यों छोड़ रही हूं चीज़े?

पूछ रही है दीवारें मुझे।


"रुक जा ज़रा! मेरे संग भी कुछ वक़्त गुजार, मैं घर हूं तेरा!

गवाह हूं मैं तेरे हर उस कोशिशों की।

खुश तो तुम तब हुई थी।

जब तेरे नन्हे कप्ते हातों से खिची थी मुझपे लकीर।

तेरे बढ़ते उचाई के निशान मेरे स्तंभ पे आज भी है।

क्या किसी और ने तुझे इतना जाना है?

ओढ़ रही थी जब नींद की अचल तब सहम गई थी तू रात के खौफ से।

सुबह में भी उठी हूं तेरे संग, जब जब तेरे पैरों के गर्माहट ने मेरे ज़मीन को जो छुआ है।

अब ठंडी ही रह जाऊंगी मैं।

पता नहीं कुछ कर भी पाऊंगी मैं।

बैठ ज़रा तुझे निहरलू।

देखू तो मैनें क्या संजोया है।

पता है तुझे, कितना गर्व होगा मुझे।”


जब लोग पूछेंगे किस घर से यह आई है ??


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