चांद और सूरज की रौशनी में
चांद और सूरज की रौशनी में
मैंने संभाला जिन्हें अपना समझ कर बाँहों में,
वो इरशाद न कर सके तन्हा समझकर राहों में।
कैसे निभाते वो साथ मेरा साथी बनकर यारों,
मैंने समेटा जिन्हें शबनम समझकर बाँहों में।
चाँद और सूरज की रौशनी में,
प्यार और हुस्न की दिल्लगी में,
आज गम के आंसू भी छल गये,
कहते रहे हुस्न का शवावी अजीज,
न दर्द से हो वाकिफ़ न दिल्लगी से,
दाग और दामन की सर जमी में,
इल्जाम और कत्ल की जिन्दगी में,
आज दर्द के आंसू भी छल गये ।
हँसा कर जो रुलाया है तुमने,
दर्द के आँचल में सजाया है तुमने।
याद रखना ऐ सहर-ए गाफिल ,
सजदा करके भुलाया है तुमने।