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DR. RICHA SHARMA

Romance

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DR. RICHA SHARMA

Romance

बिन फेरे हम तेरे

बिन फेरे हम तेरे

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बिन फेरे हम तेरे तेरी अखियाँ हर पल मुझे घेरे।

तुझे देखने की खातिर फिरने लगी हूँ मैं मुंडेरे।।


पता नहीं था कि मुझमें ये कैसा होगा बदलाव।

तेरे प्रति मेरा लगातार बढ़ता जा रहा है लगाव।।


दूर से ही तुम्हें देखकर मैं खिल जाती हूँ।

तुम से मिलने की खातिर मचल जाती हूँ।।


तुम्हारे संग एक अटूट रिश्ते में बंध जाना चाहती हूँ।

बिन फेरे लिए ही मैं तो बस तेरी हो जाना चाहती हूँ।।


लोक-बिरादरी की नहीं है अब कोई परवाह।

करना चाहती हूँ मैं तो तेरे ही संग निकाह।।


मैं मन, कर्म, वचन से तुम्हें अपना सब कुछ मान चुकी हूँ।

तुम केवल मेरे ही हो मैं ये अच्छी प्रकार जान चुकी हूँ।।


शेष बची हुई ज़िंदगी अब तो केवल तेरे ही संग बितानी है।

विशेष नायक-नायिका बन कर प्रेम की सच्ची कथा रचानी है।।


आते-जाते आखिर घूरने लगे हैं मुझे कईं चेहरे।

परवाह नहीं मुझे क्योंकि अब तो बिन फेरे हम तेरे।।


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