अपनी-अपनी बोली
अपनी-अपनी बोली
अपनी-अपनी बोली में स्नेह बनाए रखना है।
मुख के हर बोल को तौलकर हमें रखना है।।
अपनी-अपनी बोली में देशभक्ति झलकनी चाहिए।
केवल अपने भीतर ईश्वर की भक्ति होनी चाहिए।।
अन्याय के विरुद्ध लड़ने की शक्ति होनी चाहिए।
अपना कर्तव्य निभाने हेतु आसक्ति होनी चाहिए।।
मधुर संबंध बनाकर ही हमको दुनिया से जाना है।
प्रेम भरा पैगाम ही प्रत्येक प्रदेश तक पहुँचाना है।।
संसार की रीति को मिलकर हम सबको निभाना है।
फिर हँसते-मुस्कुराते गीतों को बड़े आनंद से गाना है।।
मृदुभाषी बनकर जीने वाले दिल में जगह बनाते हैं।
खुद को एकाकी बनाकर निरंतर आगे बढ़ते जाते हैं।।
सहयोग और सहनशीलता का पाठ भी वे ही पढ़ाते हैं।
अद्भुत, अविरल धारा के समान लगातार बहते जाते हैं।।
अपनी-अपनी बोली में शुभ संदेश हमें पहुँचाना है।
घर-घर में प्रेम और प्रेरणा का दीप भी जलाना है।।
तम को दूर मिटाकर सारे जहाँ में उजाला फैलाना है।
शांति का पाठ मीठी बोली से ही तो समझाना है।।