-छल में आज भी बल है
-छल में आज भी बल है
छल-बल में ही सब अपना वर्तमान में खूब ज़ोर लगाते हैं।
बदलते ज़माने के साथ सकारात्मकता भी बदल डालते हैं।।
छल में आज भी बल है पर नज़र नहीं आता।
छल करने वाला आखिर बहुत अधिक इतराता।।
स्वयं के सोच-विचार कभी बदल नहीं पाता।
हर क्षण अन्य पर ही वह इल्ज़ाम है लगाता।।
छल के बल को देखते हुए नहीं है मेरी समस्या का हल।
छल-कपट करने वाले साधारण जन को कर देते हैं पज़ल।।
तभी जीवन में सफलता का नहीं होता प्राप्त उन्हें फल।
हे मेरे प्रभु! मन के विकारों को मिटाकर सुनहरा करें कल।।
छल करने वालों की करनी-भरनी इस संसार में ही है।
निर्दयतापूर्वक व्यवहार करने वालों को भुगतना यहीं है।।
स्वार्थी व्यक्ति हर बार खुद को समझता बिलकुल सही है।
दूसरों को गलत समझने की गलती करता हर बार वही है।।
छल की छाल पहनकर हर बार चाल चलता है।
काल की तीव्रता को भी बिलकुल नहीं समझता है।।
बेवज़ह व्यर्थ की बातों में ही हर बार उलझता है।
छल-बल में फंसने वालों का नहीं कोई हल होता है।।
