हे कृष्णा !
हे कृष्णा !
हे कृष्णा ! तृप्त कीजिए सभी की तृष्णा बस इतनी गुज़ारिश है।
आज कलयुग में सभी के बीच दिखती बहुत बड़ी साजिश है।।
लोभ में अंधे होकर अपनों से ही हम हाथ धो बैठते हैं।
अपने स्वार्थीपन में अक्सर अपनों को ही खो बैठते हैं।।
निस्वार्थ भाव से सेवा करने की सबसे अधिक जरूरत है।
तृप्त हो सारा संसार बस इसकी बहुत अधिक जरूरत है।।
हे कृष्णा ! तृप्त कीजिए सभी की तृष्णा...............
प्रत्येक प्यासे की प्यास बुझाओ, सुकर्म करते हुए आगे जाओ।
इतना प्रभु ! इन्हें समझाओ, सोए हुए को अवश्य जगाओ।।
मन, कर्म, वचन तीनों से केवल सत्य की नेक राह अपनाओ।
परोपकारी भावना से ही आप सबकी सेवा करते जाओ।।
हे कृष्णा ! तृप्त कीजिए सभी की तृष्णा...............
जलते-चिढ़ते जगत् में केवल शीतलता पहुंँचाओ।
ज्ञान का पावन दीप ही सभी के दिल में जगाओ।।
बेचैन पड़े संसार में कुछ तो चैन की साँस ले आओ।
सबके कलेजे को ठंडक पहुँचाकर संतुष्ट कराओ।।
हे कृष्णा ! तृप्त कीजिए सभी की तृष्णा...............