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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"बेदर्दी मौसम"

"बेदर्दी मौसम"

2 mins
364


बारिश जब आये,उसकी अपनी ही मर्जी
कैसी चल रही है,आजकल मौसम सरगर्मी

इंतजार में सजी संवरी कुंवारी सी बैठी गर्मी
कब आयेगी,मेरी बारी,चुपचाप सी बैठी,गर्मी

पता नही चल रही,मौसम की कैसी जबर्दस्ती
कभी हमे लगती है,सर्दी कभी लगती है,गर्मी

कैसी अजब सी है,आजकल मौसम बेदर्दी
बारिश जब आये,उसकी अपनी ही मर्जी

साखी समझ गया,मौसम की बदलती,वर्दी
इस प्रकृति से की हमने बहुत छीनाझपटी

मनु मूर्खता कारण पारिस्थितकी दशा बिगड़ी
न तो पहले तो वक्त पर होती थी,मौसम बदली

मौसम को मनु मूर्खता कारण हुई,बदहज़मी
इस कारण ऋतुओं की न रही निश्चित,जमीं

किसे बताए प्रकृति मां अपने हृदय की नमी
उसका विशेष बेटा मनु हुआ,स्वार्थी,मतलबी

मौसम देख,कृषक आंखे रही,खुली की खुली
हे ईश्वर क्या होगा,वक्त पर वर्षा होगी या नही

गर न पड़ी हमारी धरती पर वक्त पर गर्मी
फिर वर्षा के लिए कहां से आयेगी,जमीं

ख़ास की हम वृक्षों को नही काटते,बेदर्दी
कल-कारखानों से न निकालते,धुँआ डर्टी

गर न छोड़ते वृक्ष लगाने की आदत,अच्छी
क्योंकि बदलती फिर ऋतुएं इतनी, जल्दी

यज्ञ करने की पुरातन आदते थी,अच्छी
जिसे हम भूल गये,आधुनिकता में जल्दी

आओ पेड़ लगाए,प्रकृति मां को सजाये
फिर ये मौसम कभी नही बनेगा,बेदर्दी

फिर तो सब ऋतुएं वक्त पर ही आयेगी, 
क्या बारिशें,क्या सर्दी और क्या हीप गर्मी
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"


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