अतीत
अतीत
चलता रहता है इंसान
लादकर अपने अतीत को
अपने कांधे पर।
बहुत भारी होती है
अतीत की गठरी
सबक और यादों में
तब्दील होते कई वाकये।
मिलना और बिछड़ना
उम्मीद और नाउम्मीद होता
कामयाबी और हताशा से भरी
दौड़ती भागती ज़िंदगी में।
चाहकर भी नहीं कर पाता है
इंसान अतीत की
इस गठरी को हल्का।
बस चुकी होती है
अतीत की यादें
जेहन में हमेशा के लिए।
उठाए अपने कांधे पर
अतीत को
भागता रहता है इंसान।
समझदार कुछ सीखकर
उम्मीद से भरे जहान को
अपने सुनहरे मुस्तक़बिल के लिए।।
