फ़लसफ़ा
फ़लसफ़ा
अजीब फ़लसफ़ा है
रिश्तों का भी ज़िंदगी में
बहुत फ़र्क होता है
चाहत और मुहब्बत में
नासमझ ही रहा
समझ ही नहीं पाया
चाहत को अपनी
जिसे मुहब्बत समझ बैठा
बहुत शिद्दत से की थी
मुहब्बत जो चाहत से
गुजरते वक़्त के साथ
जान पाया
चाहत है उसकी
मुहब्बत नहीं
मुहब्बत तो उसे
किसी ओर से है
समझ ही नहीं पाया
फ़लसफ़ा मोहब्बत का।