सुबह
सुबह
बहती नदी में सुनाई नहीं दे रहा लहरों का संगीत
नज़र नहीं आ रहा दूर - दूर तक तैरती हुई नावें
सुनाई दे रहा है केवल और केवल तटों का शोक गीत
नज़र आ रहे हैं तैरते हुए मानव शव
गुम होती सी दिख रही हैं जमीं पर संवेदनाएं
चुप है आसमान, सूरज, चाँद, तारे
सहमी हुई है घायल हवा
बरपा रहा है जमीन पर अदृश्य जीव हर पहर अपने संक्रमण का कहर
देख रहा है हर बेबस इंसान व्यवस्था की ओर
आसमान की ओर फिर से इस उम्मीद में
'सुधीर'वह खुशनुमा सुबह कभी तो आएगी........