मुसाफ़िर
मुसाफ़िर
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अकेले ही चलना है उसे
पूरा करने को
एक निश्चित सफर
तमस से निकलकर
उजाले की ओर
पहेलीनुमा ज़िंदगी में
मुसाफिर ही तो है वह
छोड़कर जाना है
उसे भी
हर बीते लम्हे को
बनाकर याद अपनों के लिए
उनकी ज़िंदगी में
जानकर भी हर इंसान
मुसाफिर है यहाँ
जाने क्यों
परेशान रहता है इंसान
अपनी ज़िंदगी में