दिवाली
दिवाली
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खामोशी सी पसरी है इस बार भी
नुक्कड़ पर सजने वाली
मिट्टी के दीयों की दुकानों में
विदेशी सामान की चकाचौंध
खींच ले जाती है
उनके सामने से खरीददारों को
अपनी सजी हुई दुकानों की ओर
महक नहीं आती शायद इन्हे
इंसानी मेहनत और पसीने की
कच्ची मिट्टी के मजबूत दीयों को
बनाने वाले हाथ खाली रह जाते हैं
इंतजार में इनके बिकने के
चकाचौंध में भ्रमित खरीददार
भूल जाते हैं
मिट्टी के दीये बनाने वाले भी
मनाते हैं दिवाली
ख़रीद कर सामान उनसे ' सुधीर '
उन्हे भी खुशी से मनाने दो दिवाली..
