अनजाना
अनजाना

1 min

235
गुमान था हमें कल तक अपना होने का यह शहर
कल तक यहां जो अपने थे आज पराए हो गए हैं
इंसान को पहचानने में हार गए हैं आईने भी यहां
चेहरे अपनों के भी मुखौटों के पीछे गुम हो गए हैं
बंद खिड़की और दरवाजों के घरों का हैं यह शहर
खामोश रहते लोग न जाने किस जहाँ के हो गए हैं
न जाने क्यों दिखता हर चेहरा यहां अनजाने सा हैं
शहर में जिंदादिल रहे लोग भी खुदगर्ज़ हो गए हैं
हर शख़्स के 'सुधीर' रंग यहां अलग ही दिख रहे हैं
निशान भाईचारे के यहां न जाने कहां गुम हो गए हैं