अंतिम सत्य
अंतिम सत्य
पल भर में सब क्षीण हो गया
पंच तत्व में लीन हो गया।
कितना कुछ अनकहा रह गया
कितना कुछ अनसुना रह गया
हवा का एक झोंका सा आया
बहा के मुझको संग ले गया।
उन्मुक्त गगन में मैं उड़ रही
स्वजनों की सिसकियाँ सुन रही
पर अपने को विवश हूँ पाती
अश्रु मैं उनके पोंछ न पाती।
हसरत के सब महल ढह गए
स्वप्न हवा के संग बह गए
सुख दुख के एहसास खो गए
कष्ट अग्नि में धुआँ हो गए।
बंधन छूट रहे हैं सारे
चाहे कितना कोई पुकारे
दूर बहुत है मुझको जाना
यादों का भी छोड़ खजाना।
साँसों की यूँ डोर कट गई
मुट्ठी से ज्यूँ रेत फिसल गई
जगा सका न फिर मुझे कोई
चिरनिद्रा में ऐसी सोई।।