STORYMIRROR

Upama Darshan

Drama Tragedy

5.0  

Upama Darshan

Drama Tragedy

अंतिम सत्य

अंतिम सत्य

1 min
417


पल भर में सब क्षीण हो गया

पंच तत्व में लीन हो गया।


कितना कुछ अनकहा रह गया

कितना कुछ अनसुना रह गया

हवा का एक झोंका सा आया

बहा के मुझको संग ले गया।


उन्मुक्त गगन में मैं उड़ रही

स्वजनों की सिसकियाँ सुन रही

पर अपने को विवश हूँ पाती

अश्रु मैं उनके पोंछ न पाती।


हसरत के सब महल ढह गए

स्वप्न हवा के संग बह गए

सुख दुख के एहसास खो गए

कष्ट अग्नि में धुआँ हो गए।


बंधन छूट रहे हैं सारे

चाहे कितना कोई पुकारे

दूर बहुत है मुझको जाना

यादों का भी छोड़ खजाना।


साँसों की यूँ डोर कट गई

मुट्ठी से ज्यूँ रेत फिसल गई

जगा सका न फिर मुझे कोई

चिरनिद्रा में ऐसी सोई।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama