शिकार
शिकार
बदल रहा है आज समाज
माँ पिता को है बेटी पर नाज़
राजकुमारी सी वह पाली जाती
बेटों से बढ़ कर मानी जाती।
पर कुछ लोग जो विकृत होते
मासूमों को भी नहीं छोड़ते
हवस का उसे शिकार बनाकर
बच्ची की हत्या कर देते।
समाज में ऐसे कितने दरिंदे
पुरुष के वेश में घूम रहे हैं
भय इनको न किसी से कोई
पौरुष के दंभ में झूम रहे है।
जाने कितनी बच्ची युवतियाँँ
रोज एक खबर बन जातीं
करीबी सम्बन्धियों द्वारा
अक्सर हैं - ये छली जातीं।
चीखें इनकी सुनी न जातीं
पीड़ा का एहसास न होता
दोषी को जब सजा न होती
स्थिति में बदलाव न होता।
नारी में होती शक्ति अपार
पशुता के आगे है लाचार
अन्याय के अंत की लेकर आस
उठती है मन में जगा विश्वास।।