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अजय गुप्ता

Fantasy

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अजय गुप्ता

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अंतिम स्टेशन

अंतिम स्टेशन

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सख्त मिजाज वक्ता वो,

धरा पर ऊपर वाले के प्रवक्ता वो,

आज घमंड से बोले,

धर्म मेरा है बस बेस्ट।


झुकता है सिर मेरा ,

अपने वाले के सामने,

कोई और नहीं यहां,

जिसका कहा हम मानते।


ऊपर वाला भी ठहरा स्मार्ट,

भेज दिया सम्मन उनके नाम,

बोला आ जाओ यहां,

और कर लो अपना हिसाब।


साहब अपने वाले की सोचते,

दूसरे वाले को कोसते,

पहुंचे ऊपर वाले के द्वार,

जहां हो रहा था उनका इंतजार।


जब दरवाजा खुला,

माहौल बड़ा जुदा था,

दूसरे धर्म वाले प्रभु का

सुंदर दरबार सजा था।


साहब थोड़ा सकपकाये फिर बोले,

गलत पते मेरी डिलीवरी है,

बेशक आप जांच कर ले,

मेरी यहां गलत इंट्री है।


प्रभु बोले, 

अंतिम स्टेशन बस एक है,

दो तरफ जिसका गेट है,

एक अच्छे कर्म वालों के लिए,

दूसरा बुरे कर्म वालो के लिए।


धर्म का यहां न कोई खेल है,

कर्मो से ही कोई पास या फेल है।

धरा पर जो कुछ हुआ है,

बताओ उसमे तुम्हारा क्या रोल है।


दरबान धीमे से उनसे बोला,

यहां अब सिर झुकाओ ,

धरती पे जो इन्हे बोला

उसका हिसाब तो बनाओ।


वो थोड़ा हिचकिचाए फिर बोले,

बचपन से सिखाया गया था यही,

अपना वाला ही सबकुछ है,

दूसरों वाला कुछ भी नहीं।


फिर बोले माफ़ कर दें आप,

अब मैं समझ गया हूं,

अंतिम स्टेशन एक है

जिसके केवल दो गेट है।


कुछ नींद हल्की हुई उनकी

तब तक अलार्म बज गया।

सारे धर्म के सम्मान में,

 सिर उनका खुद झुक गया।


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