आज़ाद परिंदे
आज़ाद परिंदे
मेरा ज़मीर ग़ुलाम
नहीं किसी का
यूँ तो सब
फिरते हैं
मारे-मारे
सीखा नहीं उलझना
पर इसने
किसी से
थोड़ी जिद्दी हूँ
पर ठिठकी नहीं
कभी
ये मंज़र भी
गुज़र जाएगा
वक्त अपना भी आएगा
सभी कपाट
खुल जाएंगे
और आजादी
भी दे जाएंगे
बेसहारा नन्हें
परिंंदे को आकाश
खुला दिखाएंगे।