बचपन का दौर
बचपन का दौर


चलो आज फिर बात करें
उन पलों को याद करें
वो पल भी कितने हसीन थे
वो पल भी कितने रंगीन थे ।
खिलखिलाती थी हँसी
गूंजता था शोर
उड़ते थे धूल पूरे गाँव
जब चलते थे हम नंगे पाँव
मिट्टी और बालू से यारी थी
बचपन ख़ुशियों की क्यारी थी।
दादी नानी से कहानियां सुनते
सब के मन को मोह लेते
मां की गोद में दुलारे लगाते
पापा के प्यारे सुत कहलाते
नन्हे नन्हे पाँव से पूरे आँगन
नाप देते
गली मोहल्ले में चाँद सा
नया नूर ले आते।
ना रहती थी आज की चिंता
और ना थी कल की फ़
िक्र
मस्ती में झुमते थे हम
और खेलते थे हो कर बेफ़िक्र।
फिर आते थे वो दिन
जब जाना पड़ता था स्कूल प्रति दिन
नखरे कर के स्कूल जाते
पढ़ाई में मन बिलकुल नहीं लगते
खाते थे डांट टीचरों से
फिर भी नहीं सुधरते थे
वो पल भी कितने हसीन थे
वो पल भी कितने रंंगीन थे ।
वो दिन का सूरज
वो रात का चाँद भी
आज फिर याद आ गई
पलकें झपकते ही
बचपन की तस्वीर दिख गई ।
काश ! ये बचपन फिर आ जाए
कोरा कागज़ जैसी जिंदगी में
रंगों की बौछार हो जाए ।