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Anjana Gupta

Abstract

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Anjana Gupta

Abstract

रिश्ता खुद की खुद से.....

रिश्ता खुद की खुद से.....

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खुद के ही ख्वाबों को टूटते देखी थी

पिंजरे में बंद खुद को बेचैन देखी थी

अंधेरों में आंखों से टपकती बूंदे देखी थी

पलकों के डालियों से झड़ते कुछ ख्वाहिशें देखी थी

भरी महफिल में खुद को अकेले देखी थी

जिंदगी के कश्मकश में खुदको फंसते देखी थी

अपनों को अंजान होते देखी थी

वक्त उड़ने का था

मगर मैं खुद को गिरते हुए देखी थी।


फिर एक दिन ,मैं खुदको खुदका हौसला बढ़ाते भी देखी थी

अपनों ने ही मेरा साथ छोड़ा था

मगर मैं खुद को अकेले चलते देखी थी

लड़खड़ाते कदमों के साथ मैं खुद को आगे बढ़ते देखी थी

खुद को ही खुद का साथ निभाते देखी थी

शायद इसीलिए एक दिन मैं खुद को मुस्कुराते भी देखी थी

शायद इसीलिए एक दिन मैं खुद को मुस्कुराते भी देखी थी।।



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