टिटहरी
टिटहरी
घर की छोटी सी बगिया में
हुईं इकट्ठी आज टिटहरी |
खामोशी को चीर रही हैं,
मधुर मधुर अपनी चहकन से -
मानो बैठी कोई कचहरी |
मन में कोई व्यथा है छिपी |
चेहरों पर छाई है उदासी |
अकस्मात जब !
कुछ ही पल में,
शांत पड़ गई,
उनकी चहकन |
तभी एक बुजुर्ग सी चिड़िया,
अपनी भाषा में कुछ बोली -
अपने इस समस्त जीवन में,
ऐसा वक्त कभी ना देखा,
उड़-उड़ जहाँ-जहाँ पर जाते,
सूना और वीराना लगता |
कुछ भी नहीं समझ ये आता -
हुआ क्यों जग से कुपित विधाता |
ऐसा-वैसा ना कुछ होता,
परिदृश्य कैसे ये दिखता |
तभी दूसरी चिड़िया बोली -
संकट का हल करने को अब,
करना होगा जग वालों को,
कुछ हटकर ही |
अब न चलेगा कोई बहाना,
लौटे जिससे वक्त पुराना,
कीमत पड़े न और चुकाना |
इनने जो भी गलत किया है,
करना होगा इन्हें प्रायश्चित,
लेना होगा आज इन्हें प्रण -
गलती फिर न दोहराने का,
उचित सर्वथा अपनाने का |
तभी विधाता तो पिघलेगा,
क्रोध जो छाया तभी गलेगा |
हम अपनी उस चहकन को फिर,
तब ही वापस ला पाएंगे,
खुशी-खुशी मिल कर के हम सब -
जीवन शेष बिताएंगे |
गीत नए फिर गाएंगे |
