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Anup Kumar

Fantasy

3  

Anup Kumar

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टिटहरी

टिटहरी

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घर की छोटी सी बगिया में 

हुईं इकट्ठी आज टिटहरी |

खामोशी को चीर रही हैं, 

मधुर मधुर अपनी चहकन से -

मानो बैठी कोई कचहरी |

मन में कोई व्यथा है छिपी |

चेहरों पर छाई है उदासी |

अकस्मात जब !

कुछ ही पल में, 

शांत पड़ गई, 

उनकी चहकन |

तभी एक बुजुर्ग सी चिड़िया, 

अपनी भाषा में कुछ बोली -

अपने इस समस्त जीवन में, 

ऐसा वक्त कभी ना देखा, 

उड़-उड़ जहाँ-जहाँ पर जाते, 

सूना और वीराना लगता |

कुछ भी नहीं समझ ये आता -

हुआ क्यों जग से कुपित विधाता |

ऐसा-वैसा ना कुछ होता, 

परिदृश्य कैसे ये दिखता |

तभी दूसरी चिड़िया बोली -

संकट का हल करने को अब, 

करना होगा जग वालों को, 

कुछ हटकर ही |

अब न चलेगा कोई बहाना, 

लौटे जिससे वक्त पुराना, 

कीमत पड़े न और चुकाना |

इनने जो भी गलत किया है, 

करना होगा इन्हें प्रायश्चित, 

लेना होगा आज इन्हें प्रण -

गलती फिर न दोहराने का, 

उचित सर्वथा अपनाने का |

तभी विधाता तो पिघलेगा, 

क्रोध जो छाया तभी गलेगा | 

हम अपनी उस चहकन को फिर, 

तब ही वापस ला पाएंगे, 

खुशी-खुशी मिल कर के हम सब -

जीवन शेष बिताएंगे |

गीत नए फिर गाएंगे |


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